इसके अतिरिक्‍त, खोजी और अनुपूरक प्रश्‍न पूछने से मंत्रियों का भी परीक्षण होता है कि वे अपने विभागों के कार्यकरण को कितना समझते हैं।

प्रश्‍नकाल संसद की कार्यवाहियों का सबसे अधिक दिलचस्‍प अंग है। लोगों के लिए समाचारपत्रों के लिए और स्‍वयं सदस्‍यों के लिए कोई अन्‍य कार्य इतनी दिलचस्‍पी पैदा नहीं करता जितनी कि प्रश्‍नकाल पैदा करता है। इस काल के दौरान सदन का वातावरण अनिश्‍चित होता है। कभी अचानक तनाव का बवंडर उठ खड़ा होता है तो कभी कहकहे लगने लगते हैं। कभी कभी किसी प्रश्‍न पर होने वाले कटु तर्क-वितर्क से उत्तेजना पैदा होती है। ऐसी हालत सदस्‍यों या मंत्रियों की हाजिर-जवाबी और विनोदप्रियता से दूर हो जाती है।

यही कारण है कि प्रश्‍नकाल के दौरान न केवल सदन कक्ष बल्‍कि दर्शक एवं प्रेस गैलरियां भी सदा लगभग भरी रहती हैं।

कुछ प्रश्‍नों का मौखिक उत्तर दिया जाता है। इन्‍हें तारांकित प्रश्‍न कहा जाता है। अतारांकित प्रश्‍नों का लिखित उत्तर दिया जाता है।

यह बात निश्‍चित रूप से कही जा सकती है कि सदस्‍य प्रश्‍न पूछने के अधिकार का प्रयोग करने में भारी रूचि दिखाते रहे हैं। चूंकि प्रश्‍नों की प्रक्रिया अपेक्षतया सरल और आसान है। अंत: यह संसदीय प्रक्रिया के अन्‍य उपायों की तुलना में संसद सदस्‍यों में अधिकाधिक प्रिय होती जा रही है।

शून्‍यकाल (जीरो आवर)

संसद के दोनों सदनों में प्रश्‍नकाल के ठीक बाद का समय आमतौर पर शून्‍यकाल अथवा जीरो आवर के नाम से जाना जाने लगा है। यह एक से अधिक अर्थों में शून्‍यकाल होता है। 12 बजे दोपहर का समय न तो मध्‍याह्न पूर्व का समय होता है और न ही मध्‍याह्न पश्‍चात का समय। शून्‍यकाल 12 बजे प्रारंभ होने के कारण इस नाम से जाना जाता है इसे आवर भी कहा गया क्‍योंकि पहले शून्‍यकाल पूरे घंटे तक चलता