था। अर्थात 1 बजे दिन में सदन का दिन के भोजन के लिए अवकाश होने तक।

यह कोई नहीं कह सकता कि इस काल के दौरान कौन-सा मामला उठ खड़ा हो या सरकार पर किस तरह का आक्रमण कर दिया जाए। नियमों में शून्‍यकाल का कहीं भी कोई उल्‍लेख नहीं है। प्रश्‍नकाल के समाप्‍त होते ही सदस्‍यगण ऐसे मामले उठाने के लिए खड़े हो जाते हैं जिनके बारे में वे महसूस करते हैं कि कार्यवाही करने में देरी नहीं की जा सकती। हालांकि इस प्रकार मामले उठाने के लिए नियमों में कोई उपबंध नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस प्रथा के पीछे यही विचार रहा है कि ऐसे नियम जो राष्‍ट्रीय महत्‍व के मामले या लोगों की गंभीर शिकायतों संबंधी मामले सदन में तुरंत उठाए जाने में सदस्‍यों के लिए बाधक होते हैं, वे निरर्थक हैं।

नियमों की दृष्‍टि से तथाकथित शून्‍यकाल एक अनियमितता है। मामले चूंकि बिना अनुमति के या बिना पूर्व सूचना के उठाए जाते हैं अंतः इससे सदन का बहुमूल्‍य समय व्‍यर्थ जाता है। इससे सदन के विधायी, वित्तीय और अन्‍य नियमित कार्य का अतिक्रमण होता है। अब तो शून्‍यकाल में उठाये जाने वाले कुछ मामलों की पहले से दी गई सूचना के आधार पर, अध्‍यक्ष की अनुमति से, एक सूची भी बनने लगी है।

 

6. संसद में जनहित के मामले

संसद के दोनों सदनों के नियमों में लोक महत्‍व के मामले बिना देरी के और कई प्रकार से उठाने की व्‍यवस्‍था है। जो विभिन्‍न प्रक्रियाएं प्रत्‍येक सदस्‍य को उपलब्‍ध रहती हैं वे इस प्रकार हैं:

(1) स्‍थगन प्रस्‍ताव- इसके द्वारा लोक सभा के नियमित काम-काज को रोककर तत्‍काल महत्‍वूपर्ण मामले पर चर्चा कराई जा