दूसरी अवस्‍था अनुदानों की मांगों पर चर्चा और मतदान की है सामान्‍यतया, प्रत्‍येक मंत्रालय के लिए प्रस्‍तावित अनुदानों के लिए अलग मांगे रखी जाती हैं। इन मांगो का संबंध बजट के व्‍यय वाले भाग से होता है। इनका स्‍वरूप कार्यपालिका द्वारा लोक सभा के लिए किए गए निवेदन का है कि मांगी गई राशि को खर्च करने का अधिकार दिया जाए।

मांगो पर चर्चा रूचिपूर्ण होती है। चर्चा के दौरान मंत्रालय की नीतियों और क्रियाकलापों की बारीकी से छानबीन की जाती है। अनुदानों की मांगों के मूल प्रस्‍ताव के सहायक प्रस्‍ताव पेश करके सदस्‍य ऐसा कर सकते हैं। इन सहायक प्रस्‍तावों को संसदीय भाषा में कटौती प्रस्‍ताव कहा जाता है।

कटौती प्रस्‍ताव सामान्‍यतया विपक्ष के सदस्‍यों द्वारा पेश किए जाते हैं। यदि वे स्‍वीकृत हो जाएं तो इसका अर्थ सरकार की निंदा होता है। ऐसी स्‍थिति में, सरकार को यह सोचना पड़ता है कि क्‍या उसका पद पर बने रहना उचित होगा।

 

लेखानुदान

बजट पास करने की प्रक्रिया बजट पेश किए जाने से इस पर चर्चा करने और अनुदानों की मांगे स्‍वीकृत करने और विनियोग तथा वित्त विधेयकों के पास होने तक सामान्‍यतया चालू वित्तीय वर्ष के आरंभ होने के बाद तक चलती रहती है। जब तक संसद मांगे स्‍वीकृत नहीं कर लेती तब तक के लिए यह आवश्‍यक है कि देश का प्रशासन चलाने के लिए सरकार के पास पर्याप्‍त धन उपलब्‍ध हो। इसलिए लेखानुदान के लिए विशेष उपबंध किया गया है। जिसके द्वारा लोकसभा को शक्‍ति दी गई है कि वह बजट की प्रक्रिया पूरी होने तक किसी वित्तीय वर्ष के एक भाग के लिए पेशगी अनुदान दे सकती है।