सभी नागरिक कानून की नजरों में बराबर माने जाने चाहिए। जो दायित्‍व अन्‍य नागरिकों के हों वही उनके भी होते हैं और शायद सदस्‍य होने के नाते कुछ अधिक होते हैं।

संसदों का सबसे महत्‍वपूर्ण विशेषाधिकार है सदन और उसकी समितियों में पूरी स्‍वतंत्रता के साथ अपने विचार रखने की छूट। संसद के किसी सदस्‍य द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए किसी मत के संबंध में उसके विरूद्ध किसी न्‍यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती। संसदीय विशेषाधिकारों की सूचियां तैयार की जा सकती हैं। वास्‍तव में ये तैयार भी की गईं हैं परंतु ऐसी कोई भी सूची पूरी नहीं है। थोड़े में कह सकते हैं कि कोई भी वह काम जो सदन के, उसकी समितियों के या उसके सदस्‍यों के काम में किसी प्रकार की बाधा डाले वह संसदीय विशेषाधिकार का हनन करता है। उदाहरण के लिए, कोई सदस्‍य न केवल उस समय गिरफ्तार नहीं किया जा सकता जबकि उस सदन का, जिसका कि वह सदस्‍य हो, अधिवेशन चल रहा हो या जबकि उस संसदीय समिति की, जिसका वह सदस्‍य हो, बैठक चल रही हो, या जबकि दोनों सदनों की संयुक्‍त बैठक चल रही हो, या जबकि दोनों सदनों की संयुक्‍त बैठक चल रही हो। संसद के अधिवेशन के प्रारंभ से 40 दिन पहले और उसकी समाप्‍ति से 40 दिन बाद या जबकि वह सदन को आ रहा हो या सदन के बाहर जा रहा हो, तब भी उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।

संसद के परिसरों के भीतर, अध्‍यक्ष/सभापति की अनुमति के बिना, दीवानी या आपराधिक कोई कानूनी समन नहीं दिए जा सकते हैं। अध्‍यक्ष/सभापति की अनुमति के बिना संसद भवन के अंदर किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। क्‍योंकि संसद के परिसरों में केवल संसद के सदन के या अध्‍यक्ष/सभापति के आदेशों का पालन होता है। यहां अन्‍य किसी सरकारी प्राधिकारी के या स्‍थानीय प्रशासन के आदेश का पालन नहीं होता।

संसद का प्रत्‍येक सदन अपने विशेषाधिकार का स्‍वयं ही रक्षक होता