संविधान के उपबंधों के अनुसार संसद का गठन होने तक इसी प्रकार कार्य करती रही।

नए संविधान के तहत पहले आम चुनाव वर्ष 1951-52 में हुए। पहली चुनी हुई संसद जिसके दो सदन थे, राज्‍य सभा और लोकसभा मई, 1952 में बनी;  दूसरी लोक सभा मई, 1957 में बनी;  तीसरी अप्रैल, 1962 में; चौथी मार्च, 1967 में; पांचवी माच, 1971 में; छठी मार्च, 1977 में; सातवीं जनवरी, 1980 में; आठवीं जनवरी, 1985 में; नवीं दिसंबर, 1989 में, दसवीं जून, 1991 और ग्‍यारहवीं 1996 में बनी। 1952 में पहली बार गठित राज्‍य सभा एक निरंतर रहने वाला, स्‍थायी सदन है। जिसका कभी विघटन नहीं होता। हर दो वर्ष इसके एक-तिहाई सदस्‍य अवकाश ग्रहण करते हैं।

 

2. संसद की भूमिका

 

भारतीय लोकतंत्र में संसद जनता की सर्वोच्‍च प्रतिनिधि संस्‍था है। इसी माध्‍यम से आम लोगों की संप्रभुता को अभिव्‍यक्‍ति मिलती है। संसद ही इस बात का प्रमाण है कि हमारी राजनीतिक व्‍यवस्‍था में जनता सबसे ऊपर है, जनमत सर्वोपरि है।

संसदीय शब्‍द का अर्थ ही ऐसी लोकतंत्रात्‍मक राजनीतिक व्‍यवस्‍था है जहां सर्वोच्‍च शक्‍ति लोगों के प्रतिनिधियों के उस निकाय में निहित है जिसे संसद कहते हैं। भारत के संविधान के अधीन संघीय विधानमंडल को संसद कहा जाता है। यह वह धुरी है, जो देश के शासन की नींव है। भारतीय संसद राष्‍ट्रपति और दो सदनोंराज्‍य सभा और लोकसभासे मिलकर बनती है।

राष्‍ट्रपति : वैसे तो भारत का राष्‍ट्रपति संसद का अंग होता है। फिर भी वह दोनों में से किसी भी सदन में न बैठता है न ही उसकी चर्चाओं में