था।

केंद्रीय विधान सभा के नए चुनाव, 1915 के आखिरी तीन महीनों में हुए। कांग्रेस ने वह चुनाव 1942 के अपने भारत छोड़ो प्रस्‍ताव को लेकर लड़े। चुनावों में कांग्रेस को 102 में से 56 सीटें मिलीं। कांग्रेस विधायक दल के नेता शरत चन्‍द्र बोस थे। भारतीय स्‍वतंत्रता अधिनियम 1947 के अधीन कुछ परिवर्तन हुए। 1935 के अधिनियम के वे उपबंध काम के नहीं रह गए जिनके तहत गवर्नर-जनरल या गवर्नर अपने विवेकाधिकार के अनुसार अथवा अपने व्‍यक्‍तिगत विचार के अनुसार कार्य कर सकता था।

भारतीय स्‍वतंत्रता अधिनियम, 1947 में भारत की संविधान सभा को पूर्ण प्रभुसत्ता संपन्‍न निकाय घोषित किया गया। 14-15 अगस्‍त, 1947 की मध्‍य रात्रि को उस सभा ने देश का शासन चलाने की पूर्ण शक्‍तियां ग्रहण कर लीं। अधिनियम की धारा 8 के द्वारा संविधान सभा को पूर्ण विधायी शक्‍ति प्राप्‍त हो गई। किंतु साथ ही यह अनुभव किया गया कि संविधान सभा के संविधान-निर्माण के कार्य तथा विधानमंडल के रूप में इसके साधारण कार्य में भेद बनाए रखना जरूरी होगा।

संविधान सभा (विधायी) की एक अलग निकाय के रूप में पहली बैठक 17 नवंबर 1947 को हुई। इसके अध्‍यक्ष सभा के प्रधान डा० राजेन्‍द्र प्रसाद थे। संविधान अध्‍यक्ष पद के लिए केवल श्री जी.वी. मावलंकर का एक ही नाम प्राप्‍त हुआ था। इसलिए उन्‍हें विधिवत चुना हुआ घोषित किया गया। 14 नवंबर 1948 को संविधान का प्रारूप संविधान सभा में प्रारूप समिति के सभापति बी.आर. आम्‍बेडकर ने पेश किया। प्रस्‍ताव के पक्ष में बहुमत था। 26 जनवरी 1950 को स्‍वतंत्र भारत के गणराज्‍य का संविधान लागू हो गया। इसके कारण आधुनिक संस्‍थागत ढांचे और उसकी अन्‍य सब शाखा-प्रशाखाओं सहित पूर्ण संसदीय प्रणाली स्‍थापित हो गई। संविधान सभा भारत की अस्‍थायी संसद बन गई। वयस्‍क मताधिकार के आधार पर पहले आम चुनावों के बाद नए