जनजातियों के लिए जनसंख्‍या-अनुपात के आधार पर स्‍थान आरक्षित है। आरंभ में यह आरक्षण दस वर्ष के लिए था। नवीनतम संशोधन के अंतर्गत अब यह पचास वर्ष के लिए अर्थात सन 2000 तक के लिए है। भारत में सदन की कार्यावधि पाँच वर्षों की है। पाँच वर्षों की अवधि समाप्‍त हो जाने पर सदन खुद भंग हो जाता है। कुछ परिस्‍थतियों में संसद को पूर्ण कार्यावधि समाप्‍त होने से पहले ही भंग किया जा सकता है। आपातकाल की स्‍थति में संसद लोक सभा की कार्यावधि बढ़ा सकती है। यह एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं हो सकती।

संसद के दोनों सदनों को, कुछ मामलों को छोड़कर सभी क्षेत्रों में समान शक्‍तियां एवं दर्जा प्राप्‍त है।  कोई भी गैर-वित्तीय विधेयक अधिनियम बनने से पहले दोनों में से प्रत्‍येक सदन द्वारा पास किया जाना आवश्‍यक है। राष्‍ट्रपति पर महाभियोग चलाने, उपराष्‍ट्रपति को हटाने, संविधान में संशोधन करने और उच्‍चतम न्‍यायालय एवं उच्‍च न्‍यायालयों के न्‍यायाधीशों को हटाने जैसे महत्‍वपूर्ण मामलों में राज्‍य सभा को लोक सभा के समान शक्‍तियां प्राप्‍त है। राष्‍ट्रपति के अध्‍यादेशों, आपात की उदघोषणा और किसी राज्‍य में संवैधानिक व्‍यवस्‍था के विफल हो जाने की उदघोषणा और किसी राज्‍य में संवैधानिक व्‍यवस्‍था के विफल हो जाने की उदघोषणा को संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखना अनिवार्य है। किसी धन विधेयक और संविधान संशोधन विधेयक को छोड़कर अन्‍य किसी भी विधेयक पर दोनों सदनों के बीच असहमति को दोनों सदनों द्वारा संयुक्‍त बैठक में दूर किया जाता है। इस बैठक में मामले बहुमत द्वारा तय किए जाते हैं। दोनों सदनों की ऐसी बैठक का पीठासीन अधिकारी लोकसभा का अध्‍यक्ष होता है।

संसद और सरकार : हमारे देश में प्रधानमंत्री और मंत्रि दोनों सदनों में से किसी भी एक का सदस्‍य हो सकते हैं। किसी ऐसे व्‍यक्‍ति को भी प्रधानमंत्री या मंत्रि नियुक्‍त किया जा सकता है जो संसद के किसी भी सदन का सदस्‍य न हो, परंतु उसे छह मास के पश्‍चात पद छोड़ना पड़ता है, यदि इस बीच, वह दोनों में से किसी सदन के लिए निर्वाचित न हो