सबसे बड़ी पार्टी बन गई। मौलाना आजाद के अनुसार पार्टी की सबसे बड़ी सफलता यह थी कि वह उन स्‍थानों पर भी जीत गई जो मुसलमानों के लिए आरक्षित थे। कुछ निर्दलीय सदस्‍यों तथा पंडित मदन मोहन मालवीय के नेतृत्‍व वाली नेशनल पार्टी ने उन्‍हें समर्थन दिया। इस प्रकार पूर्ण बहुमत मिल गया। मोतीलाल नेहरू के नेतृत्‍व में स्‍वराजवादियों ने राष्‍ट्रीय महत्‍व के अनेक प्रस्‍तावों पर सरकार को पराजित किया। बजट तथा अनेक विधायी उपायों के पास होने में बार बार रूकावटें डालीं। अनेक बार सदन से बहिर्गमन अथवा वाक आउट किये। स्‍वराजवादियों की कोशिशों के चलते 1924 और 1925 में राष्‍ट्रीय मांग संबंधी संकल्‍प भारी बहुमत से पास हुए।

केंद्रीय विधान सभा का पहला अध्‍यक्ष, सर फ्रेडरिक व्‍हाईट को मनोनीत किया गया था। परंतु अगस्‍त, 1925 में श्री विटठलभाई पटेल चुने गए और वे सभा के पहले गैर-सरकारी अध्‍यक्ष बनें।

1935 के भारत सरकार अधिनियम में भारत में एक परिसंघीय ढांचे की व्‍यवस्‍था रखी गई। अधिनियम में कहा गया था कि संघीय विधानमंडल में गवर्नर-जनरल तथा दो सदन होगें। जिन्‍हें क्रमशः कौंसिल आफ स्‍टेट (उपरि सदन) तथा हाउस आफ असेम्‍बलि (निम्‍न सदन) कहा जाएगा। कौंसिल में ब्रिटिश इंडिया के 156 प्रतिनिधि और भारतीय रियासतों के अधिक‍तम 104 प्रतिनिधि होंगे। निम्‍न सदन में ब्रिटिश इंडिया के 250 प्रतिनिधि तथा भारतीय रियासतों के अधिकतम 125 प्रतिनिधि होंगे। उपरि सदन एक स्‍थायी निकाय होगा जिसे भंग नहीं किया जा सकेगा। परंतु उसके एक-तिहाई सदस्‍य हर तीसरे साल सेवानिवृत हो जाएंगे। प्रत्‍येक संघीय असेम्‍बली, पाँच वर्षों तक कार्य करेगी। अधिनियम में उपरि सदन के लिए प्रत्‍यक्ष चुनाव का और निम्‍न सदन के लिए अप्रत्‍यक्ष चुनाव का तरीका अपनाया गया था।

1935 के अधिनियम का संघीय भाग कभी लागू नहीं हुआ। क्‍योंकि रियासतों को संघ में शामिल होने के लिए तैयार नहीं किया जा सका